-डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री-
भारतीय संविधान के एक अनुच्छेद 370 में संशोधन से पाकिस्तान इतना बौखलाया हुआ है कि भारत के खिलाफ इस मुद्दे को लेकर विभिन्न देशों का समर्थन पाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहा है, लेकिन उसे इसमें रत्ती भर भी सफलता नहीं मिलती दिखाई दे रही। पिछले दिनों जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद का सम्मेलन हुआ था , जिसमें भारत और पाकिस्तान दोनों ने भाग लिया था। पाकिस्तान ने प्रयास किया कि इस सम्मेलन में भारत के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया जाए। पाकिस्तान की इच्छा यह थी कि सम्मेलन कहे कि कश्मीर घाटी में मानवाधिकारों का हनन हो रहा था जिसे रोका जाना चाहिए। लेकिन वह अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद उतने सदस्यों का समर्थन नहीं जुटा सका जिनके समर्थन से प्रस्ताव पेश किया जा सकता था। प्रस्ताव के पारित करवाने की बात तो बहुत दूर की कल्पना थी, अलबत्ता जेनेवा के इस सम्मेलन में बहुत से बलोच पाकिस्तान पर यह आरोप लगाते हुए प्रदर्शन करते रहे कि बलूचिस्तान में पाकिस्तान मानवाधिकारों का हनन ही नहीं बल्कि उनकी हत्या भी करवा रहा था। जेनेवा में पाकिस्तान हाय तौबा करता रहा, लेकिन सभी देशों ने अनुच्छेद 370 को भारत का आंतरिक मसला ही माना। जेनेवा के इस सम्मेलन के बाद अमरीका में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा का सम्मेलन था। सम्मेलन से कई दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान नियाजी अमरीका में थे। ह्युस्टन में भारतीय मूल के लगभग साठ हजार अमरीकी नागरिक एक जनसभा में नरेंद्र मोदी को सुनने के लिए एकत्रित हुए, जो अमरीका के राजनीतिक इतिहास की अकल्पनीय घटना थी। इतना ही नहीं उस जनसभा में अमरीका के राष्ट्रपति ट्रंप भी हाजिर थे और उन्होंने जनसभा में बोलते हुए भारत की प्रशंसा ही नहीं की बल्कि यह भी माना कि दुनिया भर में रेडिकल इस्लाम ही आतंकवाद का जिम्मेदार था। इसके कई दिन बाद तक इमरान खान सफाई देते रहे कि इस्लाम का आतंकवाद से कुछ लेना-देना नहीं है। इमरान खान अमरीका में बहुत प्रयास करते रहे कि अमरीका कश्मीर को लेकर भारत को प्रश्नित करे। लेकिन ट्रंप से लेकर वहां के सांसद तक यही मानते रहे कि यह भारत का आंतरिक मामला है और पाकिस्तान को इस पर भारत से ही बात करनी चाहिए।
ट्रंप का कहना था कि अमरीका तो तभी मध्यस्थ बनने की सोचेगा यदि भारत भी इस पर सहमत हो। इस पर मोदी ने पत्रकार वार्ता में ट्रंप के सामने ही स्पष्ट कर दिया कि भारत इसके लिए अमरीका को कष्ट नहीं देगा। इतना ही नहीं मोदी ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि 1947 से पहले पाकिस्तान भी हमारा ही हिस्सा था। इसलिए भारत और पाकिस्तान को बातचीत के लिए किसी तीसरे देश की मध्यस्थता की जरूरत नहीं है। पाकिस्तान को आशा थी कि कम से कम मुसलमान देश तो एक जुट होकर पाकिस्तान की सहायता करेंगे, लेकिन तुर्की को छोड़कर किसी भी देश ने पाकिस्तान का साथ नहीं दिया। इतना ही नहीं अनेक मुस्लिम देशों ने तो स्पष्ट कहा कि कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है। जिन दिनों पाकिस्तान मुस्लिम देशों का समर्थन पाने के लिए नगर-नगर भटक रहा था, उन दिनों मुसलमान देश नरेंद्र मोदी को अपने देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान प्रदान करने के लिए कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे थे। पाकिस्तान इस खामख्याली में था कि दुनिया के मुसलमान देश उसे अपना नेता स्वीकार कर रहे हैं और आनन-फानन में भारत के खिलाफ , उसके साथ खड़े नजर आएंगे। लेकिन यह पाकिस्तान का सबसे बड़ा भ्रम था। अरब लोग पाकिस्तान के मुसलमान को अव्वल तो मुसलमान मानते ही नहीं, यदि मानते भी हैं तो उन्हें अपने मुकाबले दोयम दर्जे का समझते हैं। उनके लिए हिंदुस्तान या पाकिस्तान का मुसलमान भला अरब के मुसलमान का लीडर कैसे हो सकता था? इमरान खान को यह बात कितनी समझ आई होगी, इसके बारे में कहना तो मुश्किल है, लेकिन पाकिस्तान का अकादमिक जगत इस बात को निश्चय ही समझ गया है। पाकिस्तान के जाने माने पत्रकार जावेद नकवी ने जिन्ना द्वारा स्थापित अंग्रेजी अखबार डॉन में पूरे घटनाक्रम पर टिप्पणी करते हुए लिखा कि कश्मीर के इस घटनाक्रम से हमें एक ही सीख लेनी चाहिए कि पाकिस्तान को मजहबी घेराबंदी से बाहर निकल कर अपनी पुरानी सांस्कृतिक जड़ों की तलाश करनी चाहिए और उससे जुड़ना चाहिए। शायद यही बात एक और तरीके से मोदी ने अमरीका में कही थी कि 1947 से पहले भारत और पाकिस्तान एक ही थे। पाकिस्तान को बात समझ में आ जाए तो शायद दोनों देशों में कोई समस्या बचे ही न।
करतारपुर भी पाकिस्तान में
सिखों के प्रथम गुरु नानक देव जी से जुड़े करतारपुर कॉरिडोर के उद्घाटन के मौके पर भारतीय नेताओं का प्रवास पहले तो असमंजस में रहा। एक खबर आई कि पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह करतारपुर जा सकते हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह भी जाएंगे। यहां तक खबर चलाई गई कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस प्रवास को सहमति दे दी है। हालांकि पाकिस्तान हुकूमत ने प्रधानमंत्री मोदी को कोई न्योता तक नहीं भेजा है। कड़वाहट इस हद तक है! बीती तीन अक्तूबर की शाम में पंजाब के मुख्यमंत्री ने बयान जारी कर दिया कि करतारपुर जाने का सवाल ही नहीं है, बल्कि पूर्व प्रधानमंत्री डा. सिंह को भी जाना नहीं चाहिए। करतारपुर साहिब गुरुद्वारा पाकिस्तान में ही है। दोनों देशों की सरकारों ने साझा तौर पर इसका कॉरिडोर बनाया है, ताकि भारतीय सिख भी आध्यात्मिक सुख हासिल कर सकें। पूर्व प्रधानमंत्री के प्रवास पर न तो कांग्रेस का और न ही डा. मनमोहन सिंह के कार्यालय का कोई अधिकृत बयान आया है। अलबत्ता उनके कार्यालय ने इतनी पुष्टि जरूर की है कि पाकिस्तान से कोई औपचारिक न्योता नहीं मिला है। लेकिन अब खबर यह पुख्ता है कि पूर्व प्रधानमंत्री और पंजाब के मुख्यमंत्री सर्वदलीय जत्थे के 21 भक्तों के साथ, करतारपुर कॉरिडोर के जरिए, दरबार साहिब गुरुद्वारे जाएंगे और गुरु नानक देव के 550वें ‘प्रकाश-पर्व’ पर माथा टेक कर लौट आएंगे। मुख्यमंत्री ने साफ किया है कि वह और पूर्व प्रधानमंत्री पाकिस्तान द्वारा आयोजित किसी भी कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लेंगे। कॉरिडोर का उद्घाटन भी नौ नवंबर को है। ननकाना साहिब गुरुद्वारे से ‘नगर कीर्तन’ अमृतसर के रास्ते कपूरथला में सुल्तानपुर लोधी लाया जाएगा। उस मौके पर पंजाब सरकार जो आयोजन करेगी, उसमें राष्ट्रपति कोविंद, प्रधानमंत्री मोदी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शिरकत करने की सहमति पंजाब के मुख्यमंत्री को दी है। लेकिन इस पूरे परिप्रेक्ष्य में पाकिस्तान जरूर आता है, क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री डा. सिंह और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर को पाकिस्तान की सरजमीं पर पांव रखकर ही दरबार साहिब गुरुद्वारे तक जाना पड़ेगा। करतारपुर कॉरिडोर पाकिस्तान में ही स्थित है। अति विशिष्ट भारतीयों के जाने से वहां के वजीर-ए-आजम इमरान खान या विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी हमारे पूर्व प्रधानमंत्री से मुलाकात करने आ सकते हैं। मामला राजनयिक प्रोटोकॉल का है। वे आग्रह भी कर सकते हैं कि पाकिस्तान के साथ उद्घाटन कार्यक्रम में शिरकत करें। दरअसल हम कभी नहीं भूल सकते कि पाकिस्तान जा रहे हैं, बेशक किसी भी तरह…! सवाल है कि क्या मौजूदा परिस्थितियों में विदेश मंत्रालय या प्रधानमंत्री दफ्तर पाकिस्तान जाने की इजाजत देगा? बेशक सामान्य भक्तों के लिए दिक्कत नहीं होनी चाहिए, क्योंकि कॉरिडोर का निर्माण इसी मकसद से किया गया है कि दर्शनार्थी अपने ‘दैवीय संत’ तक पहुंच सकें और माथा टेककर अपनी आस्था बयां कर सकें, लेकिन यथार्थ यह है कि कश्मीर में अनुच्छेद 370 समाप्त करने के बाद पाकिस्तान ने भारत के साथ संबंधों को बेहद तनावपूर्ण बना दिया है। पाक वजीर-ए-आजम इमरान खान लगातार परमाणु जंग की धमकी देते रहे हैं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा, सुरक्षा परिषद, मानवाधिकार परिषद समेत पूरी दुनिया नाप डाली है कि कश्मीर में इनसानी जिंदगी बर्बाद हो रही है, कश्मीर कैदखाना बनकर रह गया है। यह दीगर है कि पाकिस्तान को कोई भी ठोस समर्थन नहीं मिला। अनुच्छेद 370 हटाने की तारीख पांच अगस्त के बाद से पाकिस्तान 440 बार संघर्ष विराम उल्लंघन कर चुका है। लगातार सीमापार गोलीबारी से करीब 25 लोग मारे जा चुके हैं। गोलाबारी और मोर्टार हमलों में सरहदी मकान ‘मलबा’ हो रहे हैं, मवेशियों को भी मारा जा रहा है। हमारे चार जवान भी ‘शहीद’ हुए हैं और 27 गंभीर रूप से घायल हैं। सीमापार से गोलीबारी और घुसपैठ रुक नहीं रही है। चूंकि भारत में यह त्योहारों का मौसम है, लिहाजा जैश-ए-मोहम्मद के चार आतंकी राजधानी दिल्ली में घुस चुके हैं। यह शीर्ष स्तर की खुफिया लीड है, लिहाजा चौकसी बढ़ा दी गई है और हर गतिविधि की जांच की जा रही है। इन हालात के मद्देनजर आध्यात्मिक इच्छाओं को पीछे रखा जाना चाहिए। गुरु पर्व भारत के कई हिस्सों में कई संगठन मनाते रहे हैं और इस बार तो नानक देव जी का 550वां ‘प्रकाश पर्व’ है। कमोबेश इन हालात में करतारपुर कॉरिडोर तक जाना भी स्थगित करना चाहिए, क्योंकि हमारे नेता, अंततः पाकिस्तान में ही जाएंगे और उसका तिल का ताड़ पाकिस्तान जरूर बनाएगा।
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